चार धाम यात्रा के दौरान मरने वाली आत्माओं के साथ क्या होता है ?
नमस्कार मित्रों, स्वागत है आपका “life motivation by jay ”
जब मनुष्य सोया रहता है, तब वह कलियुग में होता है। जब वो बैठ जाता है, तब द्वापर में और जब उठ खड़ा होता है, तब त्रेतायुग में पहुँच जाता है। और वहीं जब वह चलने लगे तो सतयुग को प्राप्त कर लेता है।
इसीलिए कलियुग में हिमालय की चार धाम यात्रा को सतयुग तुल्य माना गया है, चार धाम अथार्त यमुनोत्री से शुरू होकर, गंगोत्री, केदारनाथ के बाद बदरीनाथ पर खत्म होने वाली वो यात्रा जिसका सीधा संबंध मन, विचार और आत्मा की शुद्धि से है।
और इस तथ्य से तो आप सभी वाकिफ होंगें ही कि हाली में 3 मई,अक्षय तृतीया के मौके पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के पट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है।
और,इधर 6 मई को केदारनाथ धाम और रविवार को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते
के बाद तो मानो जैसे चारों धामों में श्रद्धालुओं
का जमावड़ा हो गया है।
ऐसा होना स्वाभाविक भी है आखिर साल में एक बार प्राप्त होने वाले इस सौभाग्य को कौन छोड़ना चाहेगा……
किन्तु,कभी कुछ श्रद्धालु ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं,जो मोक्ष प्राप्ति के इस मार्ग में चलते चलते उन्हें मृत्यु के दर्शन करा देती हैं,
ऐसी घटनाओं के बारे में सुनते ही लोगों के मन में कई सवाल आते हैं,
कि कैसे कोई चार धाम की यात्रा के लिए निकला हुआ व्यक्ति भगवान के पास पहुँच जाता है और क्या उस मोक्ष प्राप्ति की आस लिए उस भक्त को मोक्ष की प्राप्ति हो पाती है .
यदि नहीं, तो आपको बता दें कि चार धाम में सम्मिलित चारों ही स्थानों पर दिव्य आत्माओं का निवास माना गया है।
हिन्दू धर्म ग्रन्थों में तो इन्हें सबसे पवित्र स्थान की उपाधि भी दी गयी है. केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान बताया गया है तो वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ …..
कहा जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में ही रहते हैं और वाकी के 6 माह जागते हैं।
यहाँ स्थापित बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। जहाँ नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है…………..यही नहीं यहाँ निरंतर जलने वाला अखण्ड दीप भी अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है।
शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी।
जिसका कहना ये भी है कि भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं साथ ही उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है।
केदार घाटी की बात करें तो, केदारघाटी में दो पर्वत हैं- नर और नारायण ।
बताया गया है कि विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। पुराणों में वर्णानुसार उनके तप से प्रसन्न होकर ही केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे।
चलिए अब आपको इस यात्रा से मिलने वाले शुभ फल के बारे में बताते हैं…….
पुराणों में वर्णित है कि चार धाम यात्रा करने मात्र से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं
यही नहीं, चार धाम यात्रा करने वाले व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है,
साथ ही ये भी कहा गया है कि इस यात्रा में मृत्यु को प्राप्त हो जाना सबसे शुभ संकेत है।
जी हाँ, क्यूँकी अब उस व्यक्ति को जीवन-मुक्ति प्राप्त हो चुकी है।
बद्रीनाथ के बारे में एक प्रचलित कहावत, सम्भवतः आपने भी इसके बारे में सुना हो. कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी‘। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता।
शिव पुराण के अनुसार केदारतीर्थ में पहुंचकर, वहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर जो मनुष्य वहां का जल पी लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता । अथार्त वो जीवन मरण के इस प्रक्रिया से मुक्त हो चूका है
इसके आलावा, आपको बता दें. कि जो भी व्यक्ति चार धाम यात्रा करता है उसके जीवन में अभी तक लिए सभी अनुभवो में विस्तार होता है उसकी स्मृतियाँ और सोच दोनों ही बढती है . साथ ही उसे अपने जीवन के लक्ष्य और उद्देश्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
अकसर, लोग जीवन के अंतिम पड़ाव में तीर्थ यात्रा पर जाते हैं लेकिन जो युवा अवस्था में ही इस सौभाग्य को प्राप्त करता है तो जानो,उसने ही सबकुछ पाया वही परिपक्व और अनुभवी व्यक्ति है।
मित्रों, यदि आप भी चार धाम यात्रा के बारे में सोच रहें हैं और उससे जुड़ें किसी भी तरह के प्रश्न से परेशान हैं तो हमें नीचे कमेंट करके जरुर बताएं. हम आपकी इस परेशानी का हल करने की पूरी कोशिश करेंगें.
उम्मीद करते हैं आपको हमारी आज की ये जानकारी पसंद आई होगी यदि हाँ,
तो इसे अपने तक सीमित न रखें और अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ जरुर साँझा करें.
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